आते जाते कम हैं आजकल
मिलते भी कम हैं
अब बात भी कहाँ ही होती है
बस कुछ शब्द इधर उधर,
वही जुमले गिनेे चुने
जिन्दगी बहुत मस़रुफ हो चली है
ज़िम्मेदारीय़ों का बोझ बहुत है
या महसूस बहुत होता है
कोई सम्भालना सीखा दे तो
जाने किन पेचीदिगीयों में दिमाग गुम रहता है
अब कुछ भी खालिस, बेबाक नही लगता
सब कुछ नपा तुला सा है
सोचा समझा सा
चलते चलते एक रोष पैैदा होता है
एक गुबार सा बनता है
और फिर निकल भी जाता है ।
और हम फिर चल पड़तेेे हैैं
पर कब तक ।
मन गुम सा है, यकीन डगमगाया सा है
ज़्यादा नही पर
मेरी सोच में तुम, तुुम्हारी सोच में मै,
इतने में बसर करते हैैं ।
दोस्त हमेशा रहोगे तुम
इतने में बसर करते हैैं ।
अब ज़्यादा क्या सोचें, बस
आओ कभी बैठें और घंटों बातें करेंं
आओ कभी बैठें और घंटों खामोश रहें
An apology: this is not necessarily a poem but couplets written in conversational style, aping my favourite Mr. Gulzar. There is no rhyme, meter, style, or quality. But I hope a measure of my thoughts
Another: I thought a lot before posting it. Emotions have a strange way. They rouse, strike, consume, drive, and force. And then they desert and leave you empty. Then you think what the big deal was all about. Why the fuss. Let things be. I wrote this in moments of frenzy and kept postponing uploading it in moments of vacuity and self doubt. I upload it with uncertain mind.
मिलते भी कम हैं
अब बात भी कहाँ ही होती है
बस कुछ शब्द इधर उधर,
वही जुमले गिनेे चुने
जिन्दगी बहुत मस़रुफ हो चली है
ज़िम्मेदारीय़ों का बोझ बहुत है
या महसूस बहुत होता है
कोई सम्भालना सीखा दे तो
जाने किन पेचीदिगीयों में दिमाग गुम रहता है
अब कुछ भी खालिस, बेबाक नही लगता
सब कुछ नपा तुला सा है
सोचा समझा सा
चलते चलते एक रोष पैैदा होता है
एक गुबार सा बनता है
और फिर निकल भी जाता है ।
और हम फिर चल पड़तेेे हैैं
पर कब तक ।
मन गुम सा है, यकीन डगमगाया सा है
ज़्यादा नही पर
मेरी सोच में तुम, तुुम्हारी सोच में मै,
इतने में बसर करते हैैं ।
दोस्त हमेशा रहोगे तुम
इतने में बसर करते हैैं ।
अब ज़्यादा क्या सोचें, बस
आओ कभी बैठें और घंटों बातें करेंं
आओ कभी बैठें और घंटों खामोश रहें
An apology: this is not necessarily a poem but couplets written in conversational style, aping my favourite Mr. Gulzar. There is no rhyme, meter, style, or quality. But I hope a measure of my thoughts
Another: I thought a lot before posting it. Emotions have a strange way. They rouse, strike, consume, drive, and force. And then they desert and leave you empty. Then you think what the big deal was all about. Why the fuss. Let things be. I wrote this in moments of frenzy and kept postponing uploading it in moments of vacuity and self doubt. I upload it with uncertain mind.
You redeem yourself with this. . Not wholly or in full measure, but very substantially. Can't believe you wrote this. Just can't. More so because it is in Hindi. Simple thoughts, well expressed, very well targeted.
ReplyDeleteSame here, can't believe
DeleteDost hamesha rahoge tum. Good decision to post. No debate about it. Why would you not have posted it. And I visited your blog this time not expecting a new post but to search for an old rant.. Coincidence.
ReplyDeleteThe long disclaimer was not required, but can understand the thought process.
ReplyDeleteWrite more in hindi
This piece is meant for me BTW.. Ss, tns.
DeleteYou needn't say that.
DeleteNot accepting the TNS.